आज का जीवन
ए दोस्तो इस भागदौड़ भरे जीवन में हम सब ऐसे खो गए है जाग भी रहे है या पता नही कही जाकर सो गए है, सुबह उठते ही सबसे पहले मोबाइल नामक यंत्र दिखता है, भोलेपन का जमाना चला गया अब तो ठग ही बाजार में टिकता है, सौंदर्य प्रसाधन के उपयोग से भी चेहरे का रंग नही खिलता करोड़ो रूपये खर्च कर के भी दो पल सुकून नही मिलता , सात समंदर पार जाके बी चेहरे पे फैली है एक उदासी बड़ी बड़ी पार्टिया करके भी कोंन दिखरहा है राजी, आज के युग का नौजवान किस मोड़ पर आगे बढ़ा है भेड़-बकरियो की तरह बस एक झुंड में जाके खड़ा है क्या करना है क्यू करना है इस बात की किसको पड़ी है समय का सम्मान करना भूल गया हाथ मे तो सिर्फ नाम की पहनी घड़ी है, रिस्ते नाते छूट रहे है कहा गया वसुधैव कुटुम्बकम सही गलत की पहचान कहा गई लालच का घर भरा है लेके मोटी रकम, किताबो में ही रह गए है अब तो आदर्श, उसूल और शिष्टाचार, चारो तरफ सिर्फ़ फैला हुआ है लोभ , ईर्ष्या और भ्रस्टाचार, पेड़ बचाओ , पेड़ उगाओ के नारे कागज पे लिखके तुम बाटते हो, वो ही नारे के कागज के लिए फिरसे पेड़ भी तुम ही काटते हो, अतिउत्तीर्ण पदवी हांसिल कर ज्ञान क