आज का जीवन
ए दोस्तो
इस भागदौड़ भरे जीवन में
हम सब ऐसे खो गए है
जाग भी रहे है या पता नही
कही जाकर सो गए है,
सुबह उठते ही सबसे पहले
मोबाइल नामक यंत्र दिखता है,
भोलेपन का जमाना चला गया
अब तो ठग ही बाजार में टिकता है,
सौंदर्य प्रसाधन के उपयोग से भी
चेहरे का रंग नही खिलता
करोड़ो रूपये खर्च कर के भी
दो पल सुकून नही मिलता ,
सात समंदर पार जाके बी
चेहरे पे फैली है एक उदासी
बड़ी बड़ी पार्टिया करके भी
कोंन दिखरहा है राजी,
आज के युग का नौजवान
किस मोड़ पर आगे बढ़ा है
भेड़-बकरियो की तरह
बस एक झुंड में जाके खड़ा है
क्या करना है क्यू करना है
इस बात की किसको पड़ी है
समय का सम्मान करना भूल गया
हाथ मे तो सिर्फ नाम की पहनी घड़ी है,
रिस्ते नाते छूट रहे है
कहा गया वसुधैव कुटुम्बकम
सही गलत की पहचान कहा गई
लालच का घर भरा है लेके मोटी रकम,
किताबो में ही रह गए है अब तो
आदर्श, उसूल और शिष्टाचार,
चारो तरफ सिर्फ़ फैला हुआ है
लोभ , ईर्ष्या और भ्रस्टाचार,
पेड़ बचाओ , पेड़ उगाओ के नारे
कागज पे लिखके तुम बाटते हो,
वो ही नारे के कागज के लिए
फिरसे पेड़ भी तुम ही काटते हो,
अतिउत्तीर्ण पदवी हांसिल कर
ज्ञान की महारथ तो पाई है
पर जीवन की एक सीधी परिभासा
कहा किसीको समज आई है,
पढ़ाई करने के नाम पर तो जैसे
सिर्फ नोकर बनने की कसम खाई है
बुद्धि, ज्ञान या समाज कल्याण के लिए
भला शिक्षा किसने पायी है,
बुजुर्गो की बाते सुनकर जो
तुझमे अंधश्रद्धा छलक जाती है
पर उनके आयुर्वेद और जड़ीबूटीओ सा
निदान कोनसी दवाई कर पाती है,
फैशन के नाम पर तो आज कल
सिर्फ अंधा अनुकरण चल रहा है
जातिवाद और आरक्षण में फसे हुए है
फिर भी देश आगे बढ़ रहा है,
आज काल की पीढ़ी ये
किस विकास की तरफ जा रही है
खुदके कल का तो पता नही
पर देश बदलने जा रही है,
एक बहोत सीधी सी बात है
देखो परखो और जानलो
दूसरे को देखकर खुदको न बदलो
तुम क्या हो खुद को पेहचानलो,
स्वार्थ छोड़कर सेवा को चुनो
समाज कल्याण ही सबसे बड़ा दान है
विनम्र होकर सिर उठा कर जिओ
बुलंद होकर कहो, मेरा भारत महान है।
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