बचपन की यादें

नींद के बादलो के पीछे है
एक शाम रंगीन मस्तानी सी,
जो सबके लिये तो आम थी
पर हमारे लिया थी कुछ खास सी ।
अगर बात करने जाऊ
ऐसी ही कोई हसीन शाम की,
कीमत का तो पता नही मियाँ
पर बात है बड़े काम की।
स्कूल का वो बस्ता डाल के
यू बेफिकरे से चले जाते थे,
जब तक परछाई साथ न छोड़ दे
घर कहाँ लोटकर आते थे।
चाहे फ़िर हो पेड़ पे जुला जुलना
या खेली हो छुप्पन छुपाई,
वो एक लडकी जो झील में छुपी हुई थी
क्या वो वापास आई या ना आइ ।
अरे आप क्या जाने क्या होता है धनवान
कभी गोटियों से भरी जेब देखी है सही,
अरे आप क्या जाने क्या होती हैं खुशी
लॉलीपॉप के साथ फ्री स्टीकर लीया हैं कभी।
दोस्त के नाम पर तो सिर्फ
दिखावा रेह गया है आजकल,
दोस्त की भूल में भी साथ रेहकर
मास्टर की छड़ी खाई है क्या कभी।
हर रोज कोई जगड़ा हो ता
तो होती कभी तकरार है,
पर दो शब्दो का तो खेल है प्यारे
कट्टी से नाराजगी तो बट्टी से वापस प्यार है।
फिर से याद आते है वो ही पल
जो आँखो से हो गए कही ओजल,
मुर्गि पहले आइ की आया पहले अंडा
अब तक नहीं सुलझा पाए ये पजल।
वो ही लम्हे वो ही बाते
अक्सर याद आती है,
इस डरपोक हुए दिल को
गुदगुदी करके हसना जो सिखाती है।
एक वो दिन थे जब दो रुपए में भी
दुनिया भर की खुशी ढूंढ लाते थे,
और एक आज है जहाँ सो रुपए में भी
मुट्ठी भर सुकून ढूंढ़ नही पाते।
एक वो दिन थे जब मम्मी की
फटकार भी मीठी लगती थी,
और आज उसकी दो प्यारी बाते भी
नीम जैसी कडवी लगती है।
आदत सी हो ग है अब तो
घुट घुट के जीने की,
गिरते गिरते तो चलना सिखा था
आदत हो गई है चलते चलते गिरने की।
नही चाहिए ऐसा प्यार
जो दिल को सुकुन ना दे पाए,
नहीं चाइये ऐसी खुशी ,
जो चेहरे पर मुस्कान ना ला पाए।
लौटा दो मुजे मेरी शैतानीया
अब दिल से निकली ये चीख है,
खुदको खोकर बडा नही बनना मुजे
बरखुरदार, हम तो बच्चे ही ठीक है।
                ।🙏🙏।

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